Geeta Gyan
🧘♂आज का योग अभ्यास🧘♀
बाहरी पदार्थों में चित्त को कभी भी आसक्त ना होने दें।
विवरण: इंद्रियों के स्पर्श से जो भोग किए जाते हैं। वह वस्तुतः दुःखदाई होते हैं, उनका आदि भी और अंत भी होता है। इसलिए मनुष्य को इस प्रकार के नाशवान सुख से भरे पदार्थों में कभी भी स्वयं को रत नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि जितना अधिक कोई मनुष्य इनसे आसक्ती रखता है उतना ही अधिक वह इनके दोबारा ना मिलने पर कष्ट पता है। इसके विपरीत यदि वह अपने चित्त को इनमें आसक्त नही होने देता तो वह मनुष्य आत्म सुख का अनुभव करता है।
अभ्यास: प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सब प्रकार के इंद्रिय सुख से भरे विषयों को साक्षी रूप में भोगने के बाद उनके चिंतन से परहेज करे और अधिक से अधिक समय अपने चित्त को भगवान की भक्ति, ध्यान और सेवा में लगाए रखे तभी वह सब प्रकार के बाहरी पदार्थों से स्वयं के चित्त को आसक्त होने से रोक सका है।
- गीता ज्ञान परिवार
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